घर से निकले तो हो सोचा भी किधर जाओगे,
हर तरफ़ तेज़ हवाएँ हैं बिखर जाओगे।
इतना आसाँ नहीं लफ़्ज़ों पे भरोसा करना,
घर की दहलीज़ पुकारेगी जिधर जाओगे।
शाम होते ही सिमट जाएँगे सारे रस्ते,
बहते दरिया-से जहाँ होंगे, ठहर जाओगे।
हर नए शहर में कुछ रातें कड़ी होती हैं,
छत से दीवारें जुदा होंगी तो डर जाओगे।
पहले हर चीज़ नज़र आएगी बे-मा'नी सी,
और फिर अपनी ही नज़रों से उतर जाओगे।
~निदा फ़ाज़ली
हर तरफ़ तेज़ हवाएँ हैं बिखर जाओगे।
इतना आसाँ नहीं लफ़्ज़ों पे भरोसा करना,
घर की दहलीज़ पुकारेगी जिधर जाओगे।
शाम होते ही सिमट जाएँगे सारे रस्ते,
बहते दरिया-से जहाँ होंगे, ठहर जाओगे।
हर नए शहर में कुछ रातें कड़ी होती हैं,
छत से दीवारें जुदा होंगी तो डर जाओगे।
पहले हर चीज़ नज़र आएगी बे-मा'नी सी,
और फिर अपनी ही नज़रों से उतर जाओगे।
~निदा फ़ाज़ली
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